Lekhika Ranchi

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कपाल कुंडला--बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय


:७: खोज में !

And the great lord of Luna
Fell at that deadly stroke;
As falls on Mount Alvernus
A thunder-smitten oak.

Lays of Ancient Rome

इधर कपालिकने घरमें कोना-कोना खोजा, लेकिन न तो खड्ग मिला और न कपालकुण्डला ही दिखाई दी। अतः वह सन्देहमें भरा हुआ फिर वापस हुआ। वहाँ पहुँचकर उसने देखा कि वहाँ नवकुमार नहीं है। इससे उसे बड़ा अचरज हुआ। एक क्षण बाद ही निगाह कटी हुई लताओंपर गयी। अब स्वरूपका अनुभवकर कापालिक नवकुमारकी खोजमें लगा। लेकिन घोर अरण्य में भागनेवाला किस राहसे किधर गया है, यह जान लेना बहुत ही कठिन है। अन्धकार के कारण किसी को राह भी दिखाई दे नहीं सकती। अतः वह वाक्य शब्द लक्ष्यकर पहले इधर-उधर भटका, लेकिन हर समय कण्ठ-ध्वनि भी सुनाई पड़ती न थी। अतएव चारों तरफ देख सकनेके लिये वह पासके ही एक बालियाड़ीके शिखर पर चढ़ गया। कापालिक एक बाजूसे चढ़ा था, किन्तु उसे यह मालूम नहीं था कि वर्षा के कारण पानीने बहकर उसके दूसरे बाजूको प्रायः गला दिया है। शिखरपर आरोहण करनेके साथ वह गला हुआ ढूहा भार पाकर बड़े जोरके शब्दके साथ गिरा। गिरनेके समय उसके साथ ही पर्वत शिखर च्युत महिषकी तरह कापालिक भी गिरा।

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